कुछ सालों पहले किसी ने,
एक कलम यहाँ लगायी थी l
बड़े ख़याल और प्रेम से,
फिर मेरी सिचाई शुरू की थी l
पर शायद कुछ हुआ उसके साथ,
नहीं दिखा फिर कभी वो हाथ l
बस अकेला ही मैं पलता गया.
अंधड़, तूफान सब सहता गया l
मल -मूत्र और सड़े पानी से,
स्वयं को मैं सींचता रहा l
धीरे - धीरे कद बड़ा,
शाखाओं का विस्तार हुआ l
नन्ही सी कलम ने ,
वृक्ष का रूप धारण किया l
पंछियों को आश्रय दिया,
मुसाफिर हेतु साया किया I
क्षुधातुर की क्षुधा मिटाई,
रोगियों को दी मुफ्त दवाई l
बस ऐसे ही चल रही थी मेरी जिंदगानी,
यही थी मेरी अब तक की कहानी l
खुश था, कि जीवन मिला,
पर हकीकत से अनजान था l
इंसानों में भी भिन्नता होगी,
इसका मुझे ज्ञान न था l
एक भले ने जीवन दिया,
तो दूसरे ने काट दिया l
मेरे सारे अरमानो पर,
कुल्हाड़ी से प्रहार किया l
पहले मेरी शाखों को काटा ,
मानो किसी ने मेरी भुजाओं को तोड़ा l
फिर वार किया मेरे तने पर,
जैसे चाकू पेट के अंदर l
फिर उखाड़ फेंका मेरी जड़ों को,
मानो काटा मेरे पंजों को l
मेरा तो कोई स्वार्थ ना था,
परमार्थ ही मेरा कर्म था l
फिर भी मेरी हत्या पर,
माथे पर उसके कोई शिकन न था l
ऐसी निर्मम मौत दी उसने,
कि रूह मेरी कांप गयी l
नहीं चाहिए अब और नवजीवन,
चाह मुझे अब, रही नहीं l