Tuesday, May 4, 2021

टूटते रिश्ते टूटते सपने

 इन बिखरते बिगड़ते रिश्तों के दरमियान, 
एक आशियां मैं बसाना चाहता था l

जिसमे एक उम्मीद थी, 
कि ढांचा एक दिन घर बनेगा l
और प्यारा सा कुटुम्ब फिर, 
उसमे सदा निवास करेगा l

उसकी नींव में एक विश्वास था, 
पानी सा बहाव था l
मिट्टी में प्यार था और 
पत्थर सा संकल्प था l

इमारत पर इमारत चढ़ती गयी, 
आकांक्षाएँ मेरी बढ़ती गयी l
सोचा था अब नजदीक है पल, 
साथ रहेंगे फिर हर प्रहर l

पर क्या पता था 
कि ऊंचाई तक पहुंचने पर, 
कुछ रिश्ते छूट जायेंगे l
जिनका मतलब पूरा हो गया, 
वो यूँ किनारा कर जायेंगे और 
अंखियों के वो कुटुंब के सपने, 
अधूरे ही रह जायेंगे l

मतलब का ये संसार है, 
काम है तो परिवार है l
रिश्तों की परवाह रही नहीं, 
स्वयं के सिवा कोई दिखता नहीं l

यही तो वो सच्चाई थी, 
जो मैंने देखी नहीं l
बस सपना था एक कुटुंब का मेरा, 
फिलहाल वो पूरा हुआ नहीं l

माना इस बार मैं विफल रहा, 
पर प्रयास अनवरत रहेगा l
आशियाने का वो स्वप्न मेरा, 
पूरा अवश्य होकर रहेगा l

अभ्युत्कर्ष पोएट्री 

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