Thursday, May 6, 2021

वो वृक्ष

कुछ सालों पहले किसी ने, 
एक कलम यहाँ लगायी थी l
बड़े ख़याल और प्रेम से,
फिर मेरी सिचाई शुरू की थी l

पर शायद कुछ हुआ उसके साथ,
नहीं दिखा फिर कभी वो हाथ l

बस अकेला ही मैं पलता गया.
अंधड़, तूफान सब सहता गया l 
मल -मूत्र और सड़े पानी से, 
स्वयं को मैं सींचता रहा l

धीरे - धीरे कद बड़ा, 
शाखाओं का विस्तार हुआ l
नन्ही सी कलम ने , 
वृक्ष का रूप धारण किया l

पंछियों को आश्रय दिया, 
मुसाफिर हेतु साया किया I
क्षुधातुर की क्षुधा मिटाई,
रोगियों को दी मुफ्त दवाई l

बस ऐसे ही चल रही थी मेरी जिंदगानी, 
यही थी मेरी अब तक की कहानी l

खुश था, कि जीवन मिला, 
पर हकीकत से अनजान था l
इंसानों में भी भिन्नता होगी, 
इसका मुझे ज्ञान न था l

एक भले ने जीवन दिया, 
तो दूसरे ने काट दिया l
मेरे सारे अरमानो पर, 
कुल्हाड़ी से प्रहार किया l

पहले मेरी शाखों को काटा ,
मानो किसी ने मेरी भुजाओं को तोड़ा l
फिर वार किया मेरे तने पर,
जैसे चाकू पेट के अंदर l
फिर उखाड़ फेंका मेरी जड़ों को, 
मानो काटा मेरे पंजों को l

मेरा तो कोई स्वार्थ ना था, 
परमार्थ ही मेरा कर्म था l
फिर भी मेरी हत्या पर, 
माथे पर उसके कोई शिकन न था l

ऐसी निर्मम मौत दी उसने, 
कि रूह मेरी कांप गयी l
नहीं चाहिए अब और नवजीवन, 
चाह मुझे अब, रही नहीं l




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